top of page

|| श्री वासुदेवानंद सरस्वती चरित्रामृत सार ||

जय जयाजी विघ्नहरा | चिंतामणी गौरीकुमरा |
षडानन सहोदरा | नमो नमस्ते ||१||

जय जयाजी गणाधीशा | रिद्धी सिद्धी अधीशा |
शिव तनया गणेशा | नमो नमस्ते ||२||

जय जयाजी विनायका | अखिल ब्रम्हांड नायका |
देवांतक नरांतक अंतका | नमो नमस्ते ||३||

जय जयाजी मती प्रदायिनी | शुभ्रवस्त्रा वीणावादीनी |
सरस्वती मयूरवाहिनी | नमो नमस्ते ||४||

शब्द अर्थ रत्नखाणी | नांदती तव सदनी |
या बालका अल्प देऊनी | करी ग कृतार्थ ||५||

धन्य धन्य तो संतसंग | जो घडवी आंतर्बाह्य निःसंग |
आणि दावितसे श्रीरंग | सुलभपणे ||६||

संतसंगे त्रिजटा उद्धारली | राममय शबरी जाहली |
संतसंगे वाल्यास लागली | रामनामी गोडी ||७||

सकल तीर्थांचे तीर्थस्थान | ते हे पावन संतचरण |
संतसेवेहून श्रेष्ठ साधन | नाही नाही दूजे ||८||

जय जयाजी सद्गुरुराया | द्यावा आश्रय तव पाया |
दूर न करावे बालका या | तुझ्यापासोनी ||९||

तुमची महिमा वर्णावया | नसे मती मज सदया |
म्हणूनीया तव पाया | माझा माथा ||१०||

तुझ्या कृपा कटाक्षे करून | सांभाळी मज रात्रंदिन |
बालक मी तुमचा दीन | असे समर्था ||११||

अहो सद्गुरु मार्तंड नाथा | गातो परात्पर गुरूगाथा |
ठेवी गा माझिया माथा | वरदहस्ता ||१२||

चरित्र हे परमपावन | पठता स्मरता अंतःकरण |
सेवा भक्तिने संपन्न | निःसंशये होईल ||१३||

आता अवधारा श्रोतेजन | सर्वांगाचे करुनीया कान |
मोक्ष मार्गाचे सुखासन | चरित्रामृत ||१४||

जै वाढ अधर्म प्रबळी | धर्म जातसे पायदळी |
अनितीची पसरे काजळी | तै मी अवतरे ||१५||

साच करावया हे वचन | अवतरे तो पतितपावन |
पाहूनी स्वधर्म संपन्न | टेंब्येकूळ ||१६||

मनुष्य देहा धरुनीया | साक्षात दत्तगुरुराया |
धर्म संस्थापना करावया | पूनरपि अवतरला ||१७||

जेथे अवतरती संतजन | तेची तीर्थक्षेत्र अतिपावन |
जयाचे प्रेमे स्मरण दर्शन | उद्धरी जड जीवा ||१८||

ऐशापरी एक क्षेत्र पावन | माणगांवी येई प्रगटून |
टेंब्येकुळे हे उगमस्थान | शुचिष्मन्त ||१९||

असे अत्रिगोत्रोत्पन्न | ऋग्वेदी कऱ्हाडे ब्राम्हण |
घराणे धर्मपरायण | माणगांवी ||२०||

शुद्धबीजा रसाळ फळे | दाविण्या जणू हे जन्मले |
गणेशभट नामक भले | दत्तोपासक ||२१||

तयांचे पोटी श्रावणमासी | शके सतराशे शहात्तरासी |
श्रावण वद्य पंचमीसी | पावन अर्कवारी ||२२||

दत्त स्वरूपाचे अवतरण | घडे लोकोद्धारा कारण |
तेजस्वी बाळ वासुदेवा पाहून | आनंदे रमा माता ||२३||

एकवीस वर्षे होता पूर्ण | अन्नपूर्णा साध्वी चे पाणिग्रहण |
दत्त प्रभू आज्ञा समजोनी | करीती वासुदेव ||२४||

तदनंतर गायत्री पूरश्चरण | यथावधी करुनी संपन्न |
वासुदेव राहती सदा मग्न | दत्त उपासनी ||२५||

नरसोबावाडी क्षेत्र सुंदर | तेथे येती वासुदेव यतीवर |
स्वप्नामाजी अत्रिकुमर | देती मंत्रोपदेश ||२६||

कृतकृत्य होऊनी माघारी | येती जन्मभूमीसी झडकरी |
सवे घेऊनी दत्तमूर्ती साजीरी | कागल गावीची ||२७||

वैशाख शुद्ध पंचमीसी | शके अठराशे पाचासी |
प्रतिष्ठापिती यथाशास्त्र विधीसी | दत्तमूर्ती ||२८||

दत्त उपासनेचा सोहळा | दत्त आज्ञेने वाढू लागला |
देव भक्तांचा अपूर्व जिव्हाळा | रंगू लागला ||२९||

दत्त आज्ञांकित जीवनाचा | जीवनपट असे वासुदेवांचा |
महामेरू जणू अनासक्तिचा | माणगांवी शोभला ||३०||

भंडारा होता गुरुद्वादशीचा | सडा पडू लागला पावसाचा |
विरस होई सर्व भक्तांचा | या प्रसंगी ||३१||

स्वामींचे पोटी ये कळवळा | आज्ञा करिती पर्जन्याला |
संपवी या तव खेळाला | या समयी ||३२||

पाहता पाहता विरून गेल्या | आकाशी जलधारा सगळ्या |
पंक्ती वर पंक्ती उठू लागल्या | पूर्ववत ||३३||

शके अठराशे अकरा पौष मासी | दत्त आज्ञा होई वासुदेवांसी |
सोडून जावे माण ग्रामासी | देव पत्नीसह ||३४||

नरसोबावाडीसी येता | प्रसूत होई अन्नपूर्णा कांता |
मृत पुत्रासी पाहूनी उभयता | मानिती ना खेद ||३५||

दत्त आज्ञा घेऊनी शिरी | स्वामी येती करवीर नगरी |
पुढे औदुंबर बार्शी नगरी | करुनी गंगाखेडी ||३६||

पुढती शके अठराशे तेरा | गंगाखेडी गोदावरी तीरा |
अन्नपूर्णाबाईचा प्राण दोरा | तुटोनी गेला ||३७||

चवदा दिवस होता पूर्ण | वासुदेव करिती संन्यास ग्रहण |
गोविंद स्वामी रूपे दिगंबर | करीती प्रणवोपदेशा ||३८||

तदनंतर दत्त आदेश मिळाला | जावे उज्जैन नगरीला |
भेटूनी नारायणानंद सरस्वतीला | घ्यावा दंड ||३९||

त्वरे वळली पावले स्वामींची | भेट घेण्या नारायणानंदाची |
वेळ अचानक परिक्षेची | ये मंडलेश्वरी ||४०||

कैवल्याश्रम स्वामी अधिकारी | करू लागले आग्रह भारी |
येथे दंड घ्यावा सत्वरी | म्हणती वासुदेवा ||४१||

दंड घेण्याचा मानस झाला | तोच दत्तध्वनी कानी पडला |
आज्ञाभंग करावयाला | सिद्ध कैसे होता ||४२||

क्षमा याचना प्रार्थना केली | उज्जैनीकडे धाव घेतली |
नारायणानंदांची वंदिली | पदे कमळे ||४३||

नारायणानंद सरस्वती | दत्त आज्ञा स्मरुनी चित्ती |
अती प्रेम भरे दंड देती | वासुदेवांसी ||४४||

वासुदेवानंद सरस्वती | या नामे भुषवूनी प्रीती |
नारायणानंदे जणू दिव्य ज्योती | चेतवीली ||४५||

स्वामींचा चातुर्मास पहिला | उज्जैनीत संपन्न जाहला |
स्वधर्म पालनाचा फुलला | भाव जनमानसी ||४६||

ऐशापरी चातुर्मास चोवीस | स्वामींनी आचरूनी खास |
नीती धर्माची घातली वेस | चहु दिशी ||४७||

लोकोद्धारा ग्रंथ संपदा | रचिली स्मरुनि दत्तपदा |
वारील्या भय चिंता आपदा | शरणागताच्या ||४८||

आसेतू हिमालय भ्रमण | करुनिया अनन्य साधारण |
स्वधर्म ज्ञान भक्तींचे सिंचन | केले ठायी ठायी ||४९||

महामेरू हा दत्त भक्तीचा | पुतळा प्रखर वैराग्याचा |
ध्यास घेई गरुडेश्वराचा | विश्रांतीस्तव ||५०||

शके अठराशे छत्तीसात | शुद्ध प्रतिपदा आषाढ मासात |
धर्म भास्कर हा दत्तरूपांत | विलीन झाला ||५१||

व्याकुळ होई नभ मंडळ | उधळी जलधारा शीतल |
रेवामाई करी हळहळ | भक्त वियोगे ||५२||

तया यतीश्वरांचे चरणी | कृष्णदास हा त्रिकरणी |
येतसे वारंवार लोटांगणी | प्रेम भरे ||५३||

श्रीवासुदेवानंद सरस्वती | नाम हे पुण्यप्रद अती |
स्मरता प्रेमे नुरते भ्रांती | भीती सगळी ||५४||

हे वासुदेवानंद आख्यान | सप्रेमे करीता पठण |
होतसे सर्व बंध विमोचन | भाविकांचे ||५५||

लावूनिया धुप निरांजन | गुरुवारी सातवेळा पठण |
करिता कृपाप्रसाद खूण | देतील स्वामीराज ||५६||

वासुदेवानंद चरित्रामृत सार | नुरवी मनी कांही असार |
राहील भरुनी केवळसार | गुरुपाद प्रेम ||५७||

कृष्णदास (अरविंद आगाशे ) विरचीत |
वासुदेवानंद सरस्वती चरित्रामृत सार संपूर्ण |

bottom of page